गोदना

हर सुबह मेरी हथेली पर लिखा
अपना नाम देख ख़ुश हुआ करते थे,
फ़िर एक दिन जब नहीं दिखा,
तुमने आसानी से सोच लिया
मैं भूल गयी,
कुछ कहा नहीं तुमने,
बस एक चुप्पी ओढ़ ली
ये चुप्पी ख़ामोशी,
ख़ामोशी बेपरवाही,
बेपरवाही कब दूरी बनी याद नहीं..
मैं नासमझ यही सोचती रही,
किसी दिन तो मेरे मन पर गुदा
वो गहरी नीली स्याही का
स्थायी वाला गोदना देख पाओगे
जिस में चमकता है तुम्हारा नाम !
©विनीता सुराना 'किरण'

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