एहसास

क्यूँ मुस्कराते हो यूँ हौले-हौले ?
बिखरने लगती है चाँदनी,
लिपटने लगती है मुझसे,
तुम्हारी नज़रों की छुअन 
सिहरन सी देती है।
जब यूँ मुहब्बत से देखते हो,
तन्हाई में जाने कितने सुर जी उठते हैं..
अक़्सर कहती हूँ तुमसे
खुल कर मुस्कराते नहीं
पर अब समझी
मुस्कुराती तो आँखें हैं
लब तो बस भेजते हैं सन्देश
और फ़िर उलझ जाती हूँ
तुम्हारी नज़र की सरगोशियों में,
गज़ब की कशिश
बाँध लिया करती है मुझे..
कितने ही अनकहे सवाल
अनसुने ज़वाब
पर मन बस डूबता-उतरता है
मीठे से एहसास में
हाँ तुम्हारे क़रीब
बहुत क़रीब होने के एहसास में ....
©विनीता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

Kahte hai….

Chap 25 Business Calling…

Chap 34 Samar Returns