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Showing posts from February, 2015

फ्रेम

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क्या खूब सजाये रंग तुमने  लाल रंग प्रेम का,  हरा विश्वास का, ,  पीला आस्था का, सफ़ेद समर्पण का  और गढ़ दी एक तस्वीर  सौंप दी मुझे  अपनी ज़िन्दगी कहकर .... मैं दीवानी ! सहेजती रही उसे , अपनी ख्वाहिशों को जमाती रही  ताकि उनकी गर्मी  पिघला न दे तुम्हारे रंग , अपने ख्वाबों को सुखाती रही  ताकि नमी में उनकी  बह न जाएँ रंग तुम्हारे .... फिर क्यों आज वही तस्वीर  खोने लगी है चमक अपनी , फ़ीके पड़ने लगे हैं रंग , तड़कने लगा है शीशा , बस एक फ्रेम है  उन कसमों का , उन रस्मों का ,  जिन्होंने कभी बाँधा था हमें  गठबंधन में , बस वही फ्रेम है , जो अब तक जकड़े है  तस्वीर हमारी ! ©विनिता सुराना 'किरण'

शबनम (मुक्तक)

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सूखे फूल मुहब्बत के, दिल सहरा है | चश्मे पुरनम छोड़ो, दरिया गहरा है | बेपरवा दिखते रंजो-गम से यूँ तो, क़तरा शबनम बंद पलक पे ठहरा है | ©विनिता सुराना 'किरण'

कोशिश (मुक्तक)

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वफ़ा जो दिल नहीं करता, ख़ुशी दाख़िल नहीं होती। निभाने को मरासिम रस्म ही क़ाबिल नहीं होती। नहीं है उम्र वादों की, करो तो कोशिशें करना, न हो कोशिश, मुहब्बत भी कभी क़ामिल नहीं होती। ©विनीता सुराना 'कि रण'