अपना-अपना आसमां
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ख़्यालों में ही सही उड़ने की चाहत तो मैंने भी की है, महसूस भी किया है पर खोलकर हवाओं के संग बहने का रोमांच, खुले आसमां में बादलों के संग अठखेली, तन से कहीं ज्यादा मन की आज़ादी, न अपनों के उलाहने न गैरों की तीखी नज़रें, बस एक उन्मुक्त उड़ान ख़्वाबों की इन्द्रधनुषी ख्वाहिशों की...... तो उड़ने दो न मुझे, महसूस करने दो प्यास मीठे पानी की और मखमली स्पर्श उन बूंदों का जो अब्र की गोद में खेलतीं हैं, भीगना है मुझे उस रूहानी बारिश में, खो जाने दो न मुझे उस सुकून में..... तो क्या हुआ जो थोडा लडखडाऊँगी, शायद उड़ने की कोशिश में गिर भी पडूँ पर कोशिश फिर भी करनी है मुझे, कभी तो उड़ना सीख ही जाऊँगी.... कहीं ये डर तो नहीं तुम्हें कि मैं लौटूंगी या नहीं ? तो ऐसा करो, अपने मन से बाँध लो मेरे मन को, साथ तुम भी उड़ चलो पर इतना फ़ासला जरूर रखना हमारे बीच कि टकराएँ न पंख हमारे, हम चुने अपना-अपना आसमां पर मन के धागे जुड़े रहें, फिर-फिर लौटें एक दूजे की ओर मगर बंधन रस्मों-कसमों के नहीं गठबंधन हो रूह से रूह का, अरमान हो एक दूजे में पूर्ण होने का, धागे हों अ...