रंग बदलते रिश्ते


एक बिंदु से शून्य तक,
आरम्भ से इति तक, 
जीता हूँ कई किरदार,
बुनता हूँ ताना-बाना
अनगिनत रिश्तों का,
समय की धुरी पर
चलते-चलते,
प्रति क्षण गढ़ता हूँ
सम्बन्ध नए...
निर्वस्त्र से वस्त्रों की परतों तक
बदल जाते है
रंग और ढंग
इन रिश्तों के,
इन संबंधों के,
काया से छाया का
छाया से प्रतिछाया का
कभी न ख़त्म होने वाला द्वन्द !
शायद यही कारक है,
यही निर्धारक भी,
इन रिश्तों का
इन संबंधों का ....
प्रतिक्षण रंग बदलते
जीवन का !

©विनीता सुराना 'किरण'

Comments

Popular posts from this blog

Kahte hai….

Chap 25 Business Calling…

Chap 34 Samar Returns