राधा कृष्ण
करो
चाहे जतन जितने नहीं मानूँ अभी कान्हा।
मगन
तुम गोपियों में, राह तकती मैं रही कान्हा।
न
फल भाएँ न मोदक ही, न बहलाओं मुझे इनसे,
अगर
सखियों ने देखा तो उड़ायेंगी हँसी कान्हा।
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राह
पर पनघट की कान्हा यूँ नहीं छेड़ो मुझे।
अब
नहीं बातें बनाओ और लालच दो मुझे।
तुम
रसिक हो इक भ्रमर से डोलते इत उत सदा,
आज
बंसी की धुनों से फिर न भटकाओ मुझे।
-विनीता
सुराना 'किरण'
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