ग़ज़ल
जिधर देखा उधर साए
नज़र आये
लुटी इंसानियत देखी
तो घर आये
दरारें भर नहीं पाते
गुलाबी ख़त
गिले शिकवे मिटे
महबूब गर आये
तबीअत
है बड़ी रंगीं ज़रा संभलो
शरारत
घर जलाने बन शरर* आये (चिंगारी)
फ़जीअत* हर कदम रोके न तुम रुकना (दर्द, विपदा)
कहाँ
यावर* कोई बन हमसफ़र आये (सहायक)
सितारों
की तो फ़ितरत है दगा देना
करे
रोशन ‘किरण’ इक जब क़मर* आये (चन्द्रमा)
©विनिता सुराना 'किरण'
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