ये कैसा बाज़ार है ?

ये कैसा बाज़ार है ?
ये कैसा व्यापार है ?
बिकती मासूमियत औ’ बेबसी
रिवाजों की आड़ में.
बचपन बिकता कौड़ी के मोल
लालच के बाज़ार में.
बेटियों का सौदा करते
ये कैसे हैवान है?
सुनहरी सिक्कों की खनक में
बिकता यहाँ ईमान है.

ये कैसा व्यापार चले
शिक्षा के बाज़ार में?
लक्ष्मी का सौदा करते
सरस्वती की आड़ में.
दर्द और आँसू के मोल
हर दिन बिकती है रोटी.
स्वाभिमान की हर क्षण
तिल-तिल मृत्यु होती.
चीखती आबरू, घुटी सिसकियाँ
कौन सुने यहाँ, बहरा हर इंसान है.
इंसानियत का सौदा करता
बिकता स्वयं इंसान है.
©विनिता सुराना ‘किरण’

Comments

Popular posts from this blog

Kahte hai….

Chap 25 Business Calling…

Chap 34 Samar Returns