ग़ज़ल (तीरगी)


दाग गहरे भी छुपाती तीरगी
रंग अपनों के दिखाती तीरगी

कट ही जाता है सफ़र तन्हाई में
साथ हो महबूब भाती तीरगी

छोड़ जाता जब कोई अपना जहां
अश्क भी संग में बहाती तीरगी

हो अमावस चाँद छुपता ओट में
चाँदनी को भी लजाती तीरगी

ज़ख्म रिसते हर तरफ देखे 'किरण'
मखमली परदे सजाती तीरगी
©विनिता सुराना 'किरण'

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