सीधी-सादी सी ज़िन्दगी का मेरी एक आम सा दिन था वो, पर तुमने उसे ख़ास बनाया मेरे लिए. वो पहली मुलाक़ात.... हलचल सी मची थी मन में और धडकनों का शोर, अजनबी थे हम पर अनजानी सी एक डोर जोड़ रही थी आहिस्ता-आहिस्ता एक अनदेखा, अनजाना सा बंधन. हौले से थामा था तुमने जब हाथ, लब थरथराये थे मेरे करने को प्रतिवाद, पर पहली बार जीत गया मन मेरा और पराजित हुए शब्द मेरे. कनखियों से देख मेरी उलझन तुम मंद-मंद मुस्कराए थे, चलते-चलते कुछ दूर ठिठके थे मेरे कदम अचानक क्योंकि राह में बिछी थी पंखुरियाँ फूलों की. हम चले साथ-साथ एक नए सफ़र का आगाज़ था वो, न शब्दों का जाल, न वादों की सौगात, बस मन में एक अटूट विश्वास और मेरे हाथ में तुम्हारे प्रेम का प्रथम इज़हार एक ‘लाल गुलाब’. -विनिता सुराना ‘किरण’