ग़ज़ल

तुम जो आए हर तरफ बजने लगी शहनाइयां
सज गयी महफ़िल नहीं अब है कहीं तन्हाइयां

नूर कुछ ऐसा है छाया आसमां पर आज फिर
खिल रही है चांदनी लेने लगी अंगडाइयां

शोर है अब हर तरफ मिलता कहाँ दिल को सुकूं
सोच में रहता है मन पीछा करें परछाइयां

है नहीं आसां सितम उनके भुलाना आज भी
छोडती तनहा नहीं हमको कभी रुसवाइयां

झूठ का है बोलबाला हर तरफ देखो 'किरण'
रो रही है अब लुटा कर आबरू सच्चाइयां
-विनिता सुराना 'किरण'

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