ग़ज़ल (6)
चांदनी यूँ
पिघलती रही रात भर 
जिंदगी भी लरजती
रही रात भर
कौन गाता ख़ुशी के
तराने यहाँ 
गोलियां ही बरसती
रही रात भर
वो चले ढूंढने इक
ठिकाना नया 
वहशियत ही गरजती
रही रात भर
सांस घुटने लगी
बस्तियों में यहाँ 
ये हवा भी सिसकती
रही रात भर
दावतें कोठियों
में उड़ाई गयी 
एक बच्ची तरसती
रही रात भर
अब मुहब्बत
निभाता यहाँ कौन है 
बेवफाई सँवरती
रही रात भर
रंजिशें पाल लीं
दिल में सबने ‘किरण’
दोस्ती भी सिहरती
रही रात भर.
-विनिता सुराना ‘किरण’

 
 
 
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