पहला पत्थर
चलो मित्र ढूंढें
वो पहला पत्थर
दिल शीशे के
जिसने तोड़े,
बना दी वो ऊँची
सी दीवार
तेरी मेरी छत के
बीच.
वो छतें जो जुड़ीं
थी
एक छोटी सी डोली
से
जिसे फांदकर
मैं अकसर बे ख़ौफ़
चला आता था तेरे घर,
बाबा की डांट से
बचने को,
जब स्कूल की
परीक्षा में
अंक आते थे कुछ
कम.
वो छतें जो गवाह
है हमारी पतंग बाजी की,
हमारे छुप-छुप कर
बगिया से चुराई अमिया खाने की,
होली पर रँगीला
पानी फेंककर दोस्तों को अचानक भिगोने की.
गुमसुम होंगी वो
वीरान छतें भी आज हमारी ही तरह,
तो चलो न ढूंढें
वो पहला पत्थर और हटा कर उसे,
गिरा दे वो दीवार
जो खड़ी है,
मुंह चिढ़ाती तेरी
मेरी बचपन की मित्रता को.
-विनिता सुराना
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