सवेरा
कल की रात,
इक स्याह रात,
सन्नाटे गहराए थे.
कुछ बिखरे सपने,
बिछड़े कुछ अपने,
फिर याद आये थे.
घेरे थे चाँद को,
तारे भी थे सहमे,
वो गहरे साए थे.
करवटों में गुजरी रात,
किसे कहते दिल की बात,
जब अपने ही पराये थे.
कोहरे को चीर कर,
अब आया है सवेरा,
चल पड़े है तलाशने,
इक नया बसेरा.
साथ है किरणों का
और ओस में भीगी पवन,
चल पड़े है अकेले,
ढूंढने इक और चमन.
गगनचुम्भी वृक्ष उठाये हाथ,
दे रहे है दुआ अनेक,
चलता जा मुसाफिर
लेकर इरादे नेक.
पीछे छूटी वो स्याह रात,
भुला कर बीती बात,
चुन ले नयी राह, 'किरण'
आशा की किरणें कह रही,
पूरी होगी हर चाह.
-विनिता सुराना 'किरण'
Comments