एक ग़ज़ल (1)
तुझे खोकर कहाँ हम जी सकेंगे
जुदाई का ज़हर क्या पी सकेंगे
किया है प्यार तो इज़हार भी हो,
मिले जो ज़ख्म कैसे सी सकेंगे.
सफ़र होगा हसीं ग़र साथ दोगे
हुए जो तुम खफ़ा मर ही सकेंगे
घड़ी भर तो ज़रा ठहरो यहाँ तुम
मिलेगा जो सुकूं सो भी सकेंगे
भुला तुम भी नहीं सकते हमें 'किरण'
तुझे खोकर न हम भी जी सकेंगे
- विनिता सुराना
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