इस बार वो बात कहाँ
ऋतु पावस की आयी लेकिन, इस बार वो बात कहाँ?
घोर घटायें छायी लेकिन, इस बार वो बात कहाँ?
प्रथम बरखा का पीकर अमृत, धरा हुई भाव-विभोर
सौंधी खुशबू महकी लेकिन, इस बार वो बात कहाँ?
मयूर नाचे, कोयल कूकी, पीहु गाये मधुर गीत
झूले पड़े डाल पर लेकिन, इस बार वो बात कहाँ?
गीत सुनाएं रिमझिम बूँदें, पवन रचे मधु-संगीत
मन को सभी लुभाएं लेकिन, इस बार वो बात कहाँ?
उमड़-घुमड़ कर बदरा बरसे, मन मेरा व्याकुल रहे
पाती तुमने भेजी लेकिन, इस बार वो बात कहाँ?
पंख लगाकर समय उड़े पर, भार लगे हर क्षण मुझे
बरखा खूब भिगोए लेकिन, इस बार वो बात कहाँ?
ऋतु पावस की आयी लेकिन, इस बार वो बात कहाँ?
घोर घटायें छायी लेकिन, इस बार वो बात कहाँ?
-विनिता सुराना
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