बदली और चंदा

अनदेखी हैं अनजानी हैं,
  फिर भी जानी पहचानी हैं,
नयी हैं, पुरानी हैं,
  फिर भी सब को सुनानी हैं.
बदली और चंदा की,
  ये अनूठी प्रेम कहानी हैं.

तनहा वो दीवानी सी,
  श्यामल वो सुहानी सी,
नील गगन में लुक छिप जाती,
  गुमसुम वो अनजानी सी.

सूनी-सूनी अंखियों से
  टुकुर-टुकुर सी ताके वो,
जाने किसको ढूंढे नज़रें,
  मुख से कुछ न बोले वो.

सांझ ढले जब लाली गहराए,
  तारे जगमग चुनरी ओढाये,
दूर गगन से चंदा आये,
  प्यार से बाहें फैलाए.

पगली सी शर्माए वो,
  मंद-मंद मुस्काए वो,
चंदा की बाहों में खोकर,
  फूलों सी खिल जाये वो.

विरह बेला जस-तस काटी,
  मिलन की घड़ियाँ रात हैं लाती,
चंदा की प्रीत में खोयी बदली,
  बूँद-बूँद प्यार बरसाती. 

कोई कहे प्रेम-अमृत,
   कोई कहे विरह के मोती,
धरती न जाने अंतर कोई,
   वो तो पीकर तृप्त हैं होती.


सांझ मिलन और सुबह जुदाई
  सदियों से रीत यही चली आई,
अबूझ पहेली सी, ये कहानी उनकी,
  हर युग ने यूँ ही दोहराई.


आँचल में हैं प्यार,
  और आँखों में पानी हैं.
बदली और चंदा की
   ये अनूठी प्रेम कहानी हैं.
 -विनिता सुराना 'किरण'

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