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Showing posts from August, 2019

एहसासों में हम

पेंसिल की हरारत कागज़ पर होती रही, एक लम्हा जो मुसाफ़िर सा एक अरसे से  ठहरा था चित्त की गहराइयों में, आख़िर जगह पा ही गया । उसने कहा, "सुनो, जाने क्यों इसे बनाकर कोई ख़ुशी नहीं हुई, मन ...