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Showing posts from March, 2016

सफ़र - आँखों से रूह तक

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हाँ देखती तो हूँ तुम्हें हर दिन, पर मेरी आँखों का सफ़र इतना छोटा नहीं कि रुक जाए ... तुम्हारे गंभीरता ओढ़े चेहरे पर कंजूसी से मुस्कुराते होंठों पर, ख़ामोश और उदास आँखों पर, जिनकी च...

एक मुलाक़ात रंगों से

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आज होली है न ! आओ चलो कुछ क़दम मेरे साथ तुम्हें मिलवाना है आज उन सारे रंगों से जो घुले हैं मुझमें.... थोडा सा जामुनी मेरी पलकों की दहलीज़ पर ठहरे उन अनदेखे ख़्वाबों का, जिन्हें अब भी ...

अज़नबी

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अज़नबी है फिर भी तुझसे राब्ता क्यूँ है। गर मुहब्बत ही नहीं तो वास्ता क्यूँ है। अक़्स अपना ही दिखाई अब नहीं देता, आइना भी बस तुझे पहचानता क्यूँ है। ©विनीता सुराना 'किरण'