सृजन

सुरमे वाले कटीले नैन, उभरे हुए कपोल, सुतवाँ नाक में झूलती नथ, लजीले लबों पर अधखिली मुस्कान, कांधों पर झूलती बलखाती लटें, साँचे में ढला इकहरा बदन... वो गढ़ रहा था एक मूरत प्यारी सी जो अक्सर दस्तक दिया करती थी उसके ख़्वाबों की चौखट पर , चुपके से चुरा लेती थी नींद और छोड़ जाती थी एक अतृप्त प्यास ! दीवाना सा खोया था अपने मनमोहक सृजन में कि सहसा एक स्पर्श , एक एहसास , और साकार हो उठी उसकी कल्पना , एक लम्हा जो जी उठा था और भर गया उसका अधूरापन ... कल कला के पारखी आयेंगें उन्हें दिखाई देगा उसका हुनर , उसकी कला सराहा जायेगा उसका कौशल , उसका फ़न पर कहाँ देख पायेंगे वो रूमानी पल कहाँ जी पायेंगे वो मासूम एहसास दीवाना मुस्कुराएगा उनकी नासमझी पर क्यूंकि मुकम्मल कहाँ होता है कोई सृजन मुहब्बत के बिना ! © विनिता सुराना किरण