प्यास
कभी-कभी जब अंतस पर बदलियाँ सोच की छाए यादें झीने पंख लगा रिमझिम सौगातें लाए भीगे से मन-आँगन में सौंधी सी खुशबू आए उन वादों की, कसमों की फिर-फिर वो याद दिलाए मदमस्त बहे पुरवाई गीत प्रणय के फिर गाए झूम उठे मन मतवाला तूफां कितने बरपाए सदियों से प्यासी अँखियाँ खुद अपनी प्यास बुझाए कभी-कभी ...... ©विनिता सुराना 'किरण'