Kaise Bachega Bachpan?
कहीं हँसता-खेलता है बचपन , दादी-नानी की गोद में, कहीं तरसता है ममता को किसी झाडी में. बिलखता है भूख से, किसी कूड़े-दान में. असमय मृत् हो ता बचपन. कहीं किताब-कलम थामा करते हैं नन्हे हाथ, कहीं मजबूर है मजदूरी करने को, परिवार का पेट भरने को, जीवन-चक्की में हर दिन पिसता है बचपन. कहीं भविष्य के सुनहरे ख्वाब है आँखों में, कहीं कच्चे हाथों में मेहंदी की लाली लिए विदाई के आंसुओ का समुंदर है आँखों में, रस्मो-रिवाजों की आड़ में लुटता है बचपन. कहीं सपनों का राजकुमार हैं सखियों की ठिठोली में, कहीं रेत से बिखरे सपने है झोली में, नन्ही कोपल कुचल दी गयी दरिंदों की टोली में, वासना की अंधी गलियों में बिखरता है बचपन. कहीं माँ-बाबा का लाड-दुलार हैं, कहीं अपना खून ही बना हथियार हैं, जब रक्षक ही बन जाएगा भक्षक, तो पूछती है ‘विनी’, फिर कैसे ब...